शिवानी त्रिपाठी का दूसरा काव्य-संग्रह ‘तेरी चिरसंगिनी’ प्रेम के वसंत में पुष्पित-पल्लवित उन नवकुसुमों की तरह है, जिन्हें हर सौभाग्यशाली मनुष्य अपने जीवनकाल में कम से कम एक बार अपनी देह पर उगाना चाहता है। प्रेम से सराबोर ये कविताएं प्रेम की उदात्तता, पराकाष्ठा, विभिन्न स्थिति-परिस्थितियाँ संयोग-वियोग और प्रेम में आने वाली बाधाओं को बेहद सरल और सुंदर तरीके से प्रस्तुत करती हैं। इन कविताओं में व्यक्त विचार प्रेम और समाज के बीच होते संघर्ष को भी स्वर देते हैं, जो इसे प्रासंगिक बनाते हैं। कहीं आशा के स्वर प्रस्फुटित होते हैं तो कहीं स्नेहालिंगन का दर्शन होता है। कविताओं में कभी पिय दरस का विश्वास तो कभी उपेक्षा और उलाहना प्रकट होती है। कविताओं की भाषाशैली ,उसकी लयबद्धता और काव्यसौंदर्य जनमानस को सहज ही आकर्षित करता है। प्रत्येक व्यक्ति इन कविताओं और विचारों में स्वयं की अनुभूति कर सकता है। साधारण बिम्ब और प्रतीकों के माध्यम से कविताएँ अपना उद्देश्य पूरा करती हैं और इसे पाठकों के लिए रोचक और पठनीय बनाती है।
Author: Shivani Tripathi
Description
शिवानी त्रिपाठी का दूसरा काव्य-संग्रह ‘तेरी चिरसंगिनी’ प्रेम के वसंत में पुष्पित-पल्लवित उन नवकुसुमों की तरह है, जिन्हें हर सौभाग्यशाली मनुष्य अपने जीवनकाल में कम से कम एक बार अपनी देह पर उगाना चाहता है। प्रेम से सराबोर ये कविताएं प्रेम की उदात्तता, पराकाष्ठा, विभिन्न स्थिति-परिस्थितियाँ संयोग-वियोग और प्रेम में आने वाली बाधाओं को बेहद सरल और सुंदर तरीके से प्रस्तुत करती हैं। इन कविताओं में व्यक्त विचार प्रेम और समाज के बीच होते संघर्ष को भी स्वर देते हैं, जो इसे प्रासंगिक बनाते हैं। कहीं आशा के स्वर प्रस्फुटित होते हैं तो कहीं स्नेहालिंगन का दर्शन होता है। कविताओं में कभी पिय दरस का विश्वास तो कभी उपेक्षा और उलाहना प्रकट होती है। कविताओं की भाषाशैली ,उसकी लयबद्धता और काव्यसौंदर्य जनमानस को सहज ही आकर्षित करता है। प्रत्येक व्यक्ति इन कविताओं और विचारों में स्वयं की अनुभूति कर सकता है। साधारण बिम्ब और प्रतीकों के माध्यम से कविताएँ अपना उद्देश्य पूरा करती हैं और इसे पाठकों के लिए रोचक और पठनीय बनाती है।